हाड़ी रानी बूंदी के हाड़ा शासक की बेटी थी। जिनकी शादी
उदयपुर ( मेवाड़ ) के सलुंबर
ठिकाने के सरदार रावत रतन सिंह चूड़ावत से हुई और फिर बाद में उन्हें हाड़ी रानी के नाम से जाना गया।
राणा राजसिंह ने मेवाड़ के छीने हुए क्षेत्रों को मुगलों
के चंगुल से मुक्त करा लिया
था। औरंगजेब के पिता शाहजहां ने अपनी एडी चोटी की ताकत लगा दी थी। वह चुप होकर बैठ गया था। अब शासन की बागडोर औरंगजेब के
हाथों में आई थी। राणा से
चारुमती के विवाह ने उसकी द्वेष भावना को और भी भड़का दिया था। इसी बीच में एक बात और हो गयीं थी जिसने राजसिंह और औरंगजेब
को आमने सामने लाकर खड़ा
कर दिया था। यह संपूर्ण हिन्दू जाति का अपमान था। इस्लाम को कुबूल करो या हिन्दू बने रहने का दंड भरो। यही कह कर हिन्दुओं
पर उसने जजिया कर लगाया
था। राणा राजसिंह ने इसका
विरोध किया था।
मुगल बादशाह ने एक बड़ी सेना लेकर मेवाड़ पर आक्रमण कर
दिया था। राणा राजसिंह ने
सेना के तीन भाग किए थे। मुगल सेना के अरावली में न घुसने देने का दायित्व अपने बेटे जयसिंह को सौपा था। अजमेर की ओर
से बादशाह को मिलने वाली सहायता
को रोकने का काम दूसरे बेटे भीम सिंह का था। वे स्वयं अकबर और दुर्गादास राठौड़ के साथ औरंगजेब की सेना पर टूट
पड़े थे। सभी मोर्चों पर उन्हें
विजय प्राप्त हुई थी। बादशाह औरंगजेब की बड़ी प्रिय कॉकेशियन बेगम बंदी बना ली गयीं थी। बड़ी कठिनाई से किसी प्रकार
औरंगजेब प्राण बचाकर निकल सका
था। मेवाड़ के महाराणा की यह जीत ऐसी थी कि उनके जीवन काल में फिर कभी औरंगजेब उनके विरुद्ध सिर न उठा सका था।
लेकिन क्या इस विजय का श्रेय केवल राणा को था या किसी और
को?
हाड़ा रानी और हाड़ा सरदार को किसी भी प्रकार से गम नहीं था। मुगल
बादशाह जब चारों ओर राजपूतों
से घिर गए। उसकी जान के भी लाले पड़े थे। उसका बचकर निकलना मुश्किल हो गया था तब उसने दिल्ली से अपनी सहायता
के लिए अतिरिक्त सेना बुलवाई
थी। राणा को यह पहले ही ज्ञात हो चुका था। उन्होंने मुगल सेना के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करन
के लिए हाड़ा सरदार को पत्र
लिखा था। एक क्षण का भी विलंब न करते हुए हाड़ा सरदार ने अपने सैनिकों को कूच करने का आदेश दे दिया था। एक राजपूत
युद्धभूमि में अपने शीश का मोह त्यागकर
उतरता है और जरूरत पड़ने पर सिर काटने से भी पीछे नहीं हटता। यही वजह थी कि हाड़ी सरदार को उनका पत्नी प्रेम यूद्ध
भूमि में जाने से मन ही मन
रोक रहा था।
लेकिन दूसरी तरफ औरंगजेब की सेना आगे बढ़ रही थी। जिसके
बाद हाड़ी सरदार अपना भारी
मन लेकर हाड़ी रानी से विदा लेने पहुंचे। यह संदेश सुनकर हाड़ी रानी को भी सदमा लगा लेकिन हिम्मती हाड़ी रानी ने अपने
पति रतन सिंह को युद्ध पर जाने के लिए प्रेरित किया।
लेकीन हाड़ी सरदार को अपनी रानी की चिंता मन ही मन खाय जा
रही थी। राजा का मन में
संदेह था कि अगर उन्हें युद्धभूमि में कुछ हो गया तो उनकी रानी का क्या होगा लेकिन एक राजपूतानी स्त्री होने के नाते हाड़ी
रानी ने अपने पति सरदार
चूड़ावत को बेफिक्र होकर युद्ध के लिए कूच करने को कहा और ये भी कहा कि वे उनके बारे में चिंता नहीं करें और राजा की
विजय की कामना करते हुए उन्हें विदा किया। सरदार रतन सिंह चूड़ावत एक राजा होने के नाते अपने फर्ज
को निभाने के लिए युद्धभूमि
के लिए निकल तो पड़े लेकिन पत्नी प्रेम राजा को विजय से दूर ले जा रहा था। सरदार इस बात से व्याकुल था कि वे अपनी
रानी को कोई सुख नहीं दे सके
इसलिए कहीं उनकी रानी उन्हें भूला नहीं दे।
इसलिए राजा ने रानी के पास संदेशवाहक से एक पत्र भी भेजा और इस पत्र में लिखा
था कि प्रिय, मुझे भूलना नहीं, मै युद्धभूमि से जरूर लौटकर आऊंगा। और इसके साथ ही
इस पत्र में राजा
ने अपनी पत्नी से उसकी अनमोल चीज मांगने का भी प्रस्ताव रखा और कहा कि वे राजा को कोई ऐसी चीज भेंट दें जिसे देखकर
राजा का मन हल्का हो जाए।
हाड़ी रानी राजा का यह पत्र देखकर चिंता में पड़ गईं और
यह सोचने लगी कि अगर उनके
पति इस तरह पत्नी मोह से घिरे रहेंगे तो शत्रुओं से कैसे लड़ेगे। फिर क्या था मातृभूमि के लिए हाड़ी रानी ने खुद की
कुर्बानी देने का फैसला लिया।
एक सच्ची वीरांगना और राष्ट्र प्रेम की भावना के चलते
हाड़ी रानी ने पति का मोह
भंग करने के लिए और राजा को जीत दिलाने के लिए अपनी अंतिम निशानी के रूप में राजा के पास खुद का सिर काटकर संदेशवाहक से भेज दिया।
जब संदेशवाहक ने राजा चूड़ावत के सामने हाड़ी रानी के
अंतिम निशानी के रूप में
रानी का कटा हुआ सिर पेश किया तब राजा अपनी फटी आंखों से अपनी पत्नी का सिर देखता रह गया और इस तरह राजा का मोह भंग हो गया
था क्योंकि राजा की सबसे
प्रिय चीज से उनसे छीन ली गई थी।
फिर क्या था हाड़ा सरदार विजय प्राप्त करने के लक्ष्य
के साथ शत्रुओं पर टूट पड़ा
और औरंगजेब की सेना को आगे नहीं बढ़ने दिया। लेकिन इस जीत का श्रेय शौर्य को नहीं बल्कि वीरागंना हाड़ी रानी के उस
बलिदान को जाता है।
राजस्थान के मेवाड़ की हाड़ी रानी की वीरगाथा लोगों को प्रेरणा
देने वाली है और त्याग
और बलिदान की भावना को जगाने वाली है। हाड़ी रानी ने अपने पति को जीतने के लिए न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि एक ऐसा
बलिदान दिया जिसे शायद ही कोई
बहादुर से बहादुर व्यक्ति भी करने की जहमत उठाए।
जी हां मेवाड़ की
वीरांगना ने एक ऐसा बलिदान दिया जिसे करना तो दूर सोचना भी शायद मुमकिन नहीं है।
इस तरह हाड़ी रानी ने त्याग और बलिदान देकर अपनी
सतीत्व की रक्षा की। इसके साथ
ही वीरांगना हाड़ी रानी ने इतिहास के पन्नों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। उनके मातृभूमि के त्याग और बलिदान को हमेशा याद
किया जाएगा।
0 coment�rios:
Post a Comment